देशद्रोहियों के हस्ती को करना होगा बिल्कुल खाक, सोनभद्र में 62 वें अखिल भारतीय सम्मेलन मे वही कविता की बहार
सोनभद्र: सोनभद्र जिले में लगातार 62 वें वर्ष बृहस्पतिवार की रात साहित्य सरिता की बहार बही. साहित्य से जुड़े देश के शीर्ष मंचों में शुमार मधुरिमा साहित्य संगोष्ठी की तरफ से आयोजित कवि सम्मेलन में देश के विभिन्न हिस्सों से आए कवियों ने वीर, हास्य और श्रृंगार रस से भारी रचनाओं की ऐसी अद्भुत प्रस्तुति दी कि पूरा रात कब बीता पता ही नहीं चला. प्रख्यात चिंतक एवं नगर पालिका परिषद रावर्टसगंज के पूर्व अध्यक्ष पंडित अजय शेखर के संयोजन में आयोजित कवि सम्मेलन की शुरुआत कवियत्री कुमारी श्रीजा और गीतकार जगदीश पंथी ने वाणी वंदना श्वेत वसने मां तुम कहां हो, एक बार फिर वीणा बजा दो.. की प्रस्तुति से की. इस दौरान विधायक सदर भूपेश चौबे ने बतौर मुख्य अतिथि मौजूदगी दर्ज कराई. नोएडा से आए जाने- माने गीतकार डॉ.सुरेश ने कभी-कभी भूला सा सब कुछ याद बहुत आता है.. वक्त गुजर जाता है.. गीत के जरिए सोनभद्र से जुड़े चार दशकों के संबंध का जिक्र किया. वहीं चर्चित गीत, सोने के दिन चांदी के दिन,आ गए गांधी के दिन… गुनगुना कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. चंदौली से आये गीतकार मनोज द्विवेदी माधुर ने मैं जमाने के नज़ारों में नाकाम हूं, क्योंकि हमने किसी को छला ही नहीं., सोनभद्र की जानी-मानी कवियत्री रचना तिवारी ने मौत जी गए तुम्हारे बिन, सांस सांस जख्म कर गई.. जीत के जरिए जमकर वाह-वा ही लूटी. बलिया से आए भोजपुरी डॉ. नंद जी नंदा ने लीले खातिर तोहके मिलल आजादी, इहे राष्ट्रभक्ति सही आचरण ह.. सुनाकर जहां मौजूदा परिवेश पर करारा दंग कसा. वहीं धर्मनगरी काशी से आए कवि डॉ. धर्म प्रकाश मिश्रा ने त्रेता वाला गिद्ध सीता माता हेतु जान दिया, कलयुग के गिद्ध सीताओं को नोच खाते हैं… सुन कर यथार्थ का बोध कराया. गजलकार अब्दुल हुई ने अच्छा हुआ जो आप बेगाने हो गए, नाहक ही इश्क में कई अफसाने हो गए… शायर अशोक तिवारी ने जुबां से तल्ख मगर दिल से बहुत सच्चा है, हवेलियों के दरमियां उसका मकान कच्चा है… जैसी कई प्रस्तुतियां दी. गोरखपुर से आए गीतकार मनमोहन मिश्र ने कुब त हुनर पे आपके कोई शक नहीं, फिर दो दिलों के मिलने का कोई हक नहीं.. कवियत्री अनुपम वाणी ने छोड़कर हसरतों को इसी द्वार पर,लौट आई दबे पांव जैसे गई.. आजमगढ़ की दिव्या राय ने कोई आने की जुर्रत ना करें दिल के मोहल्ले में, मेरे दिल के इलाके में बहुत बड़े माफिया हो तुम.. कवियत्री कौशल्या कुमारी चौहान ने देशद्रोहियों के हस्ती को करना होगा बिल्कुल खाक, आग नहीं जिनके सीने में समझो वह इंसान नहीं.. जैसी रचनाओं से श्रोताओं को रात भर बांधे रखा. लोक संस्कृति को रचनाओं के जरिए सहेजने वाले कवि लखन राम जंगली ने बरवा री तरे आवे संगी, चाहे बैठ बंसिया बजावे.. गीतकार ईश्वर विरागी ने गंध अलकों में छुपाए ठहर जाओ तुमको तुझसे मैं चुरा लूं.. कवि प्रदुमन त्रिपाठी ने कस कमर जवानों फिर से शीश देना है अपने वतन के लिए.. कमलनयन त्रिपाठी ने नज्म की प्रस्तुति.., दिवाकर द्विवेदी ने हास्य रचना माई बाबू बदे भयल हउअ, बीए पढ़ई लागल बा बेट वा.. वाराणसी से सलीम शिवालवी ने एक से बढ़कर एक नज्म की प्रस्तुति देकर श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी. ओज के कवि प्रभात सिंह चंदेल ने शव लीपटा शान तिरंगे में नन्हा एक नादान खड़ा था, दूर खड़ी खड़ी थी बेवा उसकी पीछे हिंदुस्तान खड़ा था.. से जहां से देशभक्ति का जोश भरा. वहीं संचालन कर रहे वाराणसी से आए हास्य कवि नागेश शांडिल्य ने अपने काव्य पाठ से जमकर गुदगुदी छुड़ाई. गीतकार जगदीश पंथी ने सोनवा क बलिया सिवनवा में लटकल दिखई चंदनिया सहाई से जहां खेती किसानी का हाल सुनाया.वहीं अध्यक्षता कर रहे पूर्व संयुक्त स्वास्थ्य निदेशक साहित्यकार डॉ. अनिल मिश्रा ने कविता, मुक्तक छंद के जरिए आयोजन को ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया. मधुरिमा साहित्य संगोष्ठी के उपनिदेशक आशुतोष कुमार ने सभी का आभार ज्ञापित करते हुए, कार्यक्रम समापन की घोषणा की.