अटल जी एवं सुशासन-सिंधी संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में’’ विषय पर सम्पन्न हुयी संगोष्ठी
उत्तर प्रदेश सिंधी अकादमी द्वारा भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म शताब्दी वर्ष के अन्तर्गत आज दिनांक 26 दिसम्बर, 2024 को ’’अटल एवं सुशासन-सिंधी संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में’’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन अकादमी कार्यालय, इन्दिरा भवन, लखनऊ में किया गया। कार्यक्रम में सर्वप्रथम नानक चन्द लखमानी, पूर्व उपाध्यक्ष, उ0प्र0 सिंधी अकादमी, दुनीचन्द, सिंधी विद्वान, प्रकाश गोधवानी, डाॅ0 अनिल चन्दानी तथा श्रीमती कनिका गुरूनानी द्वारा भगवान झूलेलाल की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया।
कार्यक्रम में वक्ता प्रकाश गोधवानी द्वारा अवगत कराया गया कि अटल जी के प्रधानमंत्री कार्यकाल में जो सुशासन किया गया वह आज भी अनुकरणीय व उपयोगी है। अटल जी ने राजनीति में मिलकर कार्य करने की शैली विकसित की। अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता की कुछ पंक्तियो का पाठ किया गयाः-
गीत नया गाता हूॅ
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी, अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी,
हार नही मानूंगा, रार नई ठानूॅगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हॅू,
गीत नया गाता हूॅ
कार्यक्रम में वक्ता दुनीचंद चंदानी द्वारा अवगत कराया गया कि अटल जी के व्यक्तित्व का कैनवास बहुत बड़ा है, और उन्हीं के पद-चिन्हों पर आज भारत आगे बढ़ रहा है।
सुधामचंद चंदवानी ने सिंधी भाषा को राज भाषा का दर्जा देने के समय अटल जी के द्वारा दिये गये भाषण का सार प्रस्तुत किया और कहा कि अटल जी हिन्दी को माॅ और सिंधी भाषा को मौसी मानते थे।
श्रीमती कनिका गुरूनानी द्वारा अवगत कराया गया कि अटल जी बहुत अच्छे वक्ता होने के साथ साथ बहुत हाजिर जवाब थे। अपने सम्बोधन से वह सबकों मंत्र-मुग्ध कर देते थे।
कार्यक्रम के अन्त में अध्यक्षता कर रहे श्री नानकचन्द लखमानी ने अटल के साथ अपने अनुभवों को साझा किया और अटल जी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।