कानूनी विमर्श : बिना कानूनी प्रक्रिया के न लें बच्चा गोद
अधिवक्ता संवाद की कार्यशाला में भारत में इससे जुड़े सभी नियम और कानूनों को लेकर हुआ चर्चा
बिना कानूनी प्रक्रिया के बच्चा गोद लेना अपराध है इसके अलावा बच्चा तस्करी का भी खतरा रहता है
ललितपुर। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि कई लोग बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के निराश्रित और निरक्षर लोगों से बच्चा गोद ले लेते है, जिससे चाइल्ड ट्रैफिकिंग की घटनाएं घटित होना का अंदेशा रहता। अधिवक्ता संवाद की कार्यशाला में गोद लेने की प्रक्रिया की बिंदुबद्ध चर्चा हुई। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के पैनल अधिवक्ता व लीगल सर्विसेज यूनिट फॉर चिल्ड्रन समिति के सदस्य अधिवक्ता पुष्पेन्द्र सिंह चौहान बताते हैं कि भारत में बच्चा गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया हिंदू दत्तक और भरण पोषण अधिनियम 1956 और किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015 के तहत पूरी की जाती है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधीन केंद्रीय दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण इस प्रक्रिया की देखरेख करता है। सबसे पहले गोद ले रहे अभिभावक को कारा (सी.ए.आर.ए.) वेबसाइट पर पंजीकरण करना होता है या अधिकृत एडॉप्शन एजेंसीज, राज्य एडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी या जिला बाल संरक्षण इकाइयों के माध्यम से पंजीकरण कर सकते हैं। उसके पश्चात किसी अधिकृत एडॉप्शन एजेंसी के सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा एक होम स्टडी की जाती है। होम स्टडी में इस बात की पड़ताल की जाती है कि गोद लेने वाला दंपत्ति बच्चे की देखरेख करने में पूरी तरह सक्षम हैं या नहीं। होम स्टडी के बाद कारा (सी.ए.आर.ए.) पोर्टल के माध्यम से उस दंपत्ति को एक बच्चे का संदर्भ दिया जाता है। इसमें बच्चे का मेडिकल और सोशल बैक ग्राउंड होता है और दंपत्ति के पास इसे स्वीकार करने के लिए 48 घंटे का वक्त होता है। बच्चे को स्वीकार करने के बाद, उसे कुछ वक्त के लिए दंपत्ति के साथ देखभाल के लिए रखा जाता है। इस अवधि में बच्चे और उसके दत्तक माता-पिता के बीच संबंधों के मजबूत होने की उम्मीद की जाती है और उसके बाद ही गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया शुरू होती है। गोद लेने वाले दंपत्ति को संबंधित न्यायालय में गोद लेने की याचिका दाखिल करनी होती है। न्यायालय होम स्टडी रिपोर्ट, संबंधित दस्तावेज और अन्य आवश्यक कागजी कार्रवाई की समीक्षा करता है। फिर न्यायालय के द्वारा एक सुनवाई निर्धारित की जाती है जिसमें बच्चा गोद लेने के लिए जरूरी आदेश पारित किया जाता है। अधिकृत एडॉप्शन एजेंसी द्वारा समय-समय पर उस परिवार का फॉलो-अप लिया जाता है जिसने बच्चे को गोद लिया है। हर 6 महीने के अंतराल में ये फॉलो-अप दो साल तक किए जाते हैं। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के पैनल अधिवक्ता व अधिवक्ता संवाद के सदस्य अधिवक्ता स्वतंत्र व्यास बताते हैं कि अकेली महिलाएं हिंदू दत्तक और भरण पोषण अधिनियम 1956 और किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015 के तहत किसी भी बच्चे को गोद ले सकती है। इसकी कानूनी प्रक्रिया ठीक वैसी ही होती है जैसी किसी दंपत्ति के लिए होती है व अकेला पुरुष किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015 के तहत किसी बच्चे को गोद ले सकते हैं। इसमें भी पंजीकरण, होम स्टडी रिपोर्ट से लेकर पूरी कानूनी प्रक्रिया वही होती है जो एक अकेली महिला के लिए होती है। परिवारों की बदलती संरचना को देखते हुए बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को सुधारने और सुव्यवस्थित करने की दिशा में निरंतर प्रयास हो रहे हैं, जिससे जरूरतमंद दम्पत्तियों और बच्चों को सही वातावरण मिल सके और वे एक खुशहाल भविष्य का निर्माण हो सके।