महाभारत काल का अद्भुत शिवलिंग है , कुंतेश्वर महादेव मंदिर

कल्प तरु सा तरु नहीं कुंतेश्वर सा धाम——-
बाराबंकी: सरयू उच्छल जलधि तरंग तोया बाराह बन के नाम से विख्यात जनपद बाराबंकी का पौराणिक दृश्य अपना अलग ही महत्व है जहां पर महादेवा कुंतेश्वर धाम पारिजात धाम कोटवा धाम समेत कई तीर्थ स्थल व पर्यटक स्थल विद्यमान है जहां पर महाशिवरात्रि के मौके पर देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान भूत-भावन शिव की नगरी महादेवा तथा माता कुंती द्वारा स्थापित अद्भुत शिवलिंग का कुंतेश्वर धाम में रुद्राभिषेक व जलाभिषेक करके मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं।
जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर उत्तर सरयू नदी के तट पर शिव की नगरी महादेवा में देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में कावरिये नाचते गाते मयूर पंखियों से सजी कांवरे लेकर त्रिनेत्र धारी भगवान शिव का जलाभिषेक व रुद्राभिषेक करके मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं लोगों की यह धारणा है कि माता वैष्णव देवी के दर्शन करने के बाद भक्त गण भैरवनाथ के दर्शन अवश्य करते हैं उसी प्रकार से महादेवा में जलाभिषेक करने के बाद वे ग्राम किंतूर स्थित कुन्तेश्वर धाम में माता कुंती द्वारा स्थापित अद्भुत शिवलिंग का जलाभिषेक करने के पश्चात देव वृक्ष पारिजात के दर्शन करने अवश्य जाते हैं
कुंतेश्वर धाम व पारिजातधाम के संबंध में कहा जाता है कि द्वापर युग के महाभारत काल में पांडवों ने अपना कुछ समय सरयू नदी के तट पर व्यतीत किया था उस समय पांडवों की माता कुंती ने अपने पुत्रों से शिवार्चन करने की इच्छा प्रकट किया तो माता कुंती की आज्ञा पाकर महाबली भीम पर्वत मालाओं में विचरण करते हुए एक शिवलिंग को बहंगी में रखकर चल दिए जब उन्हें चलने में असुविधा तो उसी के आकार का दूसरा शिवलिंग उन्होंने बहंगी के दूरी ओर रख लिया जिसमें से एक शिवलिंग को माता कुंती ने अपने हाथों से सरयू नदी के तट पर प्रत्यारोपित कर दिया और उस स्थान का नाम कुंतेश्वर धाम रख दिया कालांतर में धीरे-धीरे वहां पर आबादी बसने लगी और एक गांव कुंतीपुर के नाम से बस गया बाद में अप्भ्रन्श होकर किंतूर के नाम से विख्यात हुआ पारिजात धाम व कुंतेश्वर धाम की पौराणिकता के संबंध में किसी कवि द्वारा कही गई पंक्तियां अच्छरस: सटीक बैठ रही है ।
कल्प तरु सा तरु नहीं , कुंतेश्वर सा धाम ।
केवल दर्शन मात्र से , पूर्ण होय सब काम ।।
कुंती मां के हाथ का , द्वापर काल युगीन ।
कुंतेश्वर महादेव का , मंदिर अति प्राचीन ।।
पड़ी पांडवों पर जबहि , समय की दोहरी मार।
राज धर्म धन संपदा मदद कीन्ह त्रिपुरार ।।
उक्त पंक्तियो से इस स्थान की पौराणिकता सिद्ध होती है कि इस अद्भुत शिवलिंग की स्थापना द्वापर युग में माता कुंती द्वारा की गई थी।कहा जाता है कि मंदिर के इस अद्भुत शिवलिंग पर चढ़ाई गई सामग्री को शाम के समय हटा दिया जाता है और रात में किसी अदृश्य शक्ति के द्वारा इस शिवलिंग की पूजा अर्चना अपने आप हो जाती है वही घंटा घड़ियालों की बजाने की आवाज़ भी अक्सर सुनसान रात्रि में गूंजती रहती हैं जो एक प्रकार से रहस्य बना हुआ है श्रद्धालुओ द्वारा इन स्थानों का दर्शन करने तथा जलाभिषेक करने से उनकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है ऐसा लोगों का विश्वास है ।