वन सम्पदा पर मंडरा रहे जातिवादिता के बादल

सीतापुर सकरन क्षेत्र में प्रतिबंधित हरे-भरे पेड़ों पर चल रहा आरा, वन दरोगा नरेंद्र यादव की भूमिका संदिग्ध
सीतापुर सकरन, सकरन क्षेत्र के जंगलों में वन माफियाओं का आतंक बढ़ता जा रहा है। यहां प्रतिबंधित हरे-भरे पेड़ों की अवैध कटाई जोरों पर है, लेकिन वन विभाग इस पर कोई ठोस कार्रवाई करता नहीं दिख रहा। स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों का आरोप है कि इस अवैध कटान में वन विभाग की भूमिका संदिग्ध है।
विगत माह में क्षेत्र के कई गाँवों से सैकड़ों प्रतिबंधित पेड़ गायब
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, बीते एक महीने में ही सकरन क्षेत्र के कई गाँवों से सैकड़ों प्रतिबंधित पेड़ काटकर गायब कर दिए गए। इनमें कई कीमती प्रजातियों के वृक्ष शामिल थे, जिनका व्यापार अवैध रूप से किया जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन की नाक के नीचे यह खेल लंबे समय से चल रहा है, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।क्षेत्र के कई गांवों जैसे अरुआ,भंगहा,बेलहोरा,रसूलपुर,सहदेवा,मुर्थना,बरछता,सेमरा कला,सेम रा खुरद,शाहपुर,सांडा इत्यादि में सैकड़ों पेड़ों का कटान वन विभाग की सह पर खुलेआम कराया गया पर ग्रामीणों की शिकायतों पर कभी गौर न कर उल्टे उन्हें ही डराया धमकाया गया.
जातिवाद का आरोप और संरक्षण की अनदेखी
स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि वन विभाग में जातिगत भेदभाव के चलते कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों को खुली छूट मिली हुई है। जिन अधिकारियों की ऊँची पहुँच है, वे अवैध कटाई को बढ़ावा दे रहे हैं, जबकि सामान्य कर्मचारियों पर सख्ती दिखाई जाती है। वन दरोगा नरेंद्र यादव पर विशेष रूप से आरोप लगाया जा रहा है कि वे वन माफियाओं के साथ मिले हुए हैं और उन्हीं को संरक्षण दे रहे हैं।
ग्रामीणों की शिकायतें अनसुनी, वन विभाग मूकदर्शक
ग्रामीणों ने इस अवैध कटाई को रोकने के लिए कई बार वन विभाग और प्रशासन से शिकायत की, लेकिन उनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर कोई गरीब व्यक्ति जलावन के लिए सूखी लकड़ी भी ले जाए तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जाती है, लेकिन बड़े पैमाने पर हो रही इस लूट पर कोई रोक नहीं लगाई जा रही।
पर्यावरण को हो रहा भारी नुकसान, जंगली जीवों के आवास पर खतरा
इस अवैध कटाई के कारण सकरन क्षेत्र की हरियाली तेजी से घट रही है। जंगलों का विनाश होने से यहाँ रहने वाले वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास खतरे में पड़ गया है। खासकर, चीतल, सियार, जंगली सूअर, और कई पक्षी प्रजातियों के लिए यह क्षेत्र अनुकूल था, लेकिन जंगलों की कटाई के कारण अब उनका जीवन संकट में पड़ गया है। इसके अलावा, इस क्षेत्र में भू-क्षरण और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं।
वन माफियाओं की मिलीभगत, ऊँची पहुँच वालों को संरक्षण?
स्थानीय सूत्रों का दावा है कि वन माफियाओं को राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है। वे बेखौफ होकर जंगलों से प्रतिबंधित पेड़ों की कटाई कर रहे हैं और उन्हें ऊँचे दामों पर बेच रहे हैं। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि जब वे इस मुद्दे को उठाते हैं, तो उन्हें डराया-धमकाया जाता है, जिससे कई लोग चुप रहने को मजबूर हो जाते हैं।
प्रशासन से निष्पक्ष जांच और कार्रवाई की माँग
पर्यावरणविदों और स्थानीय ग्रामीणों ने सरकार और वन विभाग के उच्च अधिकारियों से इस मामले की निष्पक्ष जांच की माँग की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में सकरन क्षेत्र की वन सम्पदा पूरी तरह नष्ट हो सकती है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन इस अवैध कटाई को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगा या फिर यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा? क्या वन दरोगा नरेंद्र यादव के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी, या फिर राजनीतिक दबाव में यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?