उत्तर प्रदेश

कांग्रेस की रार का बसपा को मिल सकता है सियासी फायदा,ममता के साथ जुड़ सकती हैं मायावती

उत्तर प्रदेश: यूपी की राजनीति एक बार फिर पलट सकती है.कांग्रेस और सपा के बीच आई दूरियों के बीच मायावती का रुकने राजनीतिक समीकरण को जन्म दे सकता है.हरियाणा व महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव और यूपी के उपचुनाव में कांग्रेस व सपा के बीच बढ़ी दूरियों का सियासी लाभ बसपा को मिलने की उम्मीद है.यदि कांग्रेस और सपा के बीच बात नहीं बनी तो इसकी वजह से बनाने वाले तीसरे मोर्चे का बसपा अंग बन सकती है. जानकारों की माने तो वर्तमान में पार्टी को अपना वजूद बचाने और देश की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता को बरकरार रखने के लिए इसकी जरूरत भी है.बसपा को 2007 में यूपी विधानसभा चुनाव मेंबहुमत मिला था.इससे पहले बसपा दूसरे दलों की मदद से सरकार बनाती रही,जिसका लाभ उसे लोकसभा चुनावों में भी मिलने गया. वर्ष 2012 में बसपा ने अपने अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया, जो गलत साबित हुआ.यही हाल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी हुआ.वर्ष 2019 में भाजपा ने सपा के साथ गठजोड़कर लोकसभा चुनाव लड़ा और 10 सांसदों वाली पार्टी बनी.2022 का विधानसभा चुनाव और 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने से उसे भारी नुकसान का सामना करना पड़ गया.अब पार्टी की उम्मीदें तीसरा मोर्चा पर टिकी है. तृणमूल कांग्रेस वह पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दोनों दलों को एक मंच पर ला सकती हैं.राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो कांग्रेस को दरकिनार कर अगर तीसरा मोर्चा बना तो ममता बनर्जी उसकी निर्विवाद नेता बन सकती हैं.पहले उन्हें मायावती से चुनौती मिलने के जो समीकरण बने थे वह बीते चुनाव में बसपा के लगातार घटते जनाधार की वजह से ध्वस्त हो चुके हैं.अब बसपा को अपना खोया हुआ जन आधार वापस लाने के लिए दूसरे दलों का सहारा लेना पड़ सकता है.

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